पृथ्वी पर उनका भार क्या होगा
गोचर है जिनकी अस्थियों का भूगोल
कपास की उतरन की भी उतरन से
काम चला लेते हैं - वे
बासी जूठन जिनके क्षुदित उदर का
महाभोग है उन्होंने कहां गड़बड़ाया
रसना प्रेमियों का गणित?
निरोगी हैं - वे इस अर्थ में कि
आयुर्वेद से अब तक बनी ही नहीं
उनके लिए कोई औषधि
फिर कैसे हैं - वे जीवन-रक्षक
दवाओं की बढ़ती कीमतों के अपराधी?
ऋषियों तक ने नहीं दी जिन्हें-विद्या
वे कैसे बिगाड़ सकते हैं
शिक्षा के मानक समीकरण?
सुई की नोक भर ज़मीन से वंचित
देश की सबसे बड़ी आबादी
रिहायशी हलकों का सिरदर्द
हों भी तो कैसे?
भले वे पात्र न हों सभ्य मुखौटे के बीच
शोभित होने वाले
अपनी भूमिका का
स्वंय उन्होंने किया है वरण
इतिहास की धाराएँ उन्होंने ही मोड़ी हैं
हर काल हर युग में वे ही बने हैं निमित्त
भू-मां की भार मुक्ति के ।
-----
प्रगतिशील कवि जनेश्वर
के ‘सतत् आदान के बिना शाश्वत प्रदाता के शिल्प में’
शीर्षक से शीघ्र प्रकाश्य काव्य संग्रह की एक कविता।
यदि कोई सज्जन इस सामग्री का उपयोग करें तो कृपया इस ब्लाग का उल्लेख अवश्य करें। यदि कोई इसे मुद्रित स्वरुप् प्रदान करें तो सम्बन्धित प्रकाशन की एक प्रति मुझे अवश्य भेजें। मेरा पता है - विष्णु बैरागी, पोस्ट बाक्स नम्बर-19, रतलाम (मध्य प्रदेश) 457001.
कृपया मेरे ब्लाग ‘एकोऽहम्’ http://akoham.blogspot.com पर भी एक नजर अवश्य डालें।
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
sundar rachanaa preshit ki hai
ReplyDeleteकपास की उतरन की भी उतरन से
ReplyDeleteकाम चला लेते हैं - वे
बासी जूठन जिनके क्षुदित उदर का
महाभोग है उन्होंने कहां गड़बड़ाया
रसना प्रेमियों का गणित?
बहुत सुंदर रचना, बहुत ही भावुक.
धन्यवाद