2/16/2009
दुनिया को जोड़िए
दिल में नफ़रत हाथों में हथियार से नहीं,
मसले भी हल होंगे पर तक़रार से नहीं ।
राहे-मुहब्बत में इकरार करना सीखिये,
बनता दिल का आशियाँ इनकार से नहीं ।
सोची-समझी बात अक्सर देती साथ है,
पाना हो मंजिलों को तो ऱफ्तार से नहीं ।
बेशक मज़ाक कीजिए अपनों से आप लोग,
लेकिन् ये खेल अब किसी लाचार से नहीं ।
दुनिया को बदलना हो तो दुनिया को जोड़िये,
ये काम तो होगा मग़र दो-चार से नहीं ।
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आशीष दशोत्तर ‘अंकुर’ की एक गजल
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अच्छी और प्रेरक गजल है, आभार।
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर ओर शिक्षा प्रद रचना , धन्यवाद
ReplyDeleteदिल में नफ़रत हाथों में हथियार से नहीं,
ReplyDeleteमसले भी हल होंगे पर तक़रार से नहीं
वाह्! अति उत्तम विचार.....आभार.