2/20/2009

जो रचते हैं प्रति-संसार

खुले में पड़े पत्थर भी हमेशा
ढंके नहीं रहते धूल से
झरे, सूखे पत्ते भी ढंक लेते हैं
ज़मीन का ऐब

वृक्ष के सबसे मीठे जातक होते हैं
सड़े हुए फल
मछलियाँ हों तो समझो
जल है निर्मल

रौंधी हुई माटी देती है
कभी फसल तो कभी शिल्प
रौंधे गए अवाम देते हैं
सिर्फ़ और सिर्फ़ विकल्प.
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प्रगतिशील कवि जनेश्वर के ‘सतत् आदान के बिना शाश्वत प्रदाता के शिल्प में’ शीर्षक से शीघ्र प्रकाश्य काव्य संग्रह की एक कविता।

यदि कोई सज्जन इस सामग्री का उपयोग करें तो कृपया इस ब्लाग का उल्लेख अवश्य करें। यदि कोई इसे मुद्रित स्वरुप् प्रदान करें तो सम्बन्धित प्रकाशन की एक प्रति मुझे अवश्य भेजें। मेरा पता है - विष्णु बैरागी, पोस्ट बाक्स नम्बर-19, रतलाम (मध्य प्रदेश) 457001.

कृपया मेरे ब्लाग ‘एकोऽहम्’ http://akoham.blogspot.com पर भी एक नजर अवश्य डालें।

6 comments:

  1. रोंदी हुई मिटी देती है फसल तो कभी शिल्प
    रोंधे गये अवाम देते हैं सिर्फ विकल्प
    बहुत ही सुन्दर् अभिव्यक्ति है

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  2. आभार इस प्रस्तुति के लिए.

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  3. अच्छी लगी यह रचना शुक्रिया

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  4. खुले में पड़े पत्थर भी हमेशा
    ढंके नहीं रहते धूल से
    झरे, सूखे पत्ते भी ढंक लेते हैं
    ज़मीन का ऐब

    वृक्ष के सबसे मीठे जातक होते हैं
    सड़े हुए फल
    मछलियाँ हों तो समझो
    जल है निर्मल

    Visnu ji Janesvar ji ki rachna bhot pasand aayi...shukriya..!!

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  5. बहुत ख़ूब कहा कवि ने बैरागी जी, क्या कहना !
    रौंधे गए अवाम देते हैं
    सिर्फ़ और सिर्फ़ विकल्प
    वाह वाह !

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