ढंके नहीं रहते धूल से
झरे, सूखे पत्ते भी ढंक लेते हैं
ज़मीन का ऐब
वृक्ष के सबसे मीठे जातक होते हैं
सड़े हुए फल
मछलियाँ हों तो समझो
जल है निर्मल
रौंधी हुई माटी देती है
कभी फसल तो कभी शिल्प
रौंधे गए अवाम देते हैं
सिर्फ़ और सिर्फ़ विकल्प.
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प्रगतिशील कवि जनेश्वर के ‘सतत् आदान के बिना शाश्वत प्रदाता के शिल्प में’ शीर्षक से शीघ्र प्रकाश्य काव्य संग्रह की एक कविता।
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रोंदी हुई मिटी देती है फसल तो कभी शिल्प
ReplyDeleteरोंधे गये अवाम देते हैं सिर्फ विकल्प
बहुत ही सुन्दर् अभिव्यक्ति है
आभार इस प्रस्तुति के लिए.
ReplyDeleteअच्छी रचना।
ReplyDeleteअच्छी लगी यह रचना शुक्रिया
ReplyDeleteखुले में पड़े पत्थर भी हमेशा
ReplyDeleteढंके नहीं रहते धूल से
झरे, सूखे पत्ते भी ढंक लेते हैं
ज़मीन का ऐब
वृक्ष के सबसे मीठे जातक होते हैं
सड़े हुए फल
मछलियाँ हों तो समझो
जल है निर्मल
Visnu ji Janesvar ji ki rachna bhot pasand aayi...shukriya..!!
बहुत ख़ूब कहा कवि ने बैरागी जी, क्या कहना !
ReplyDeleteरौंधे गए अवाम देते हैं
सिर्फ़ और सिर्फ़ विकल्प
वाह वाह !