2/09/2009

शब्द शक्ति और सद्भाव

शब्द शक्ति

शब्द
हाँ शब्द ही तो हैं
जो मुझे
मैं और तुम का
अर्थ बताते हैं
जब
तुम नहीं थी
तो मैं
शब्द की शक्ति से
परिचित नहीं था ।
लेकिन
तुम जैसे ही
मेरे करीब आई
मुझे शब्द शक्ति का
अहसास होने लगा
मैं समझ गया कि
तुम्हारे आते ही
मैं, मैं नहीं रहा/आप हो गया
और आप, तुम ।
-----



सद्भाव


फिर कर रहे हैं
प़ड़ौसी पर विश्वास
बढ़ते आतंकवाद को
नजरअन्दाज कर
इस आस में
कि होगा
साम्प्रदायिक सद्भाव कायम
लेकिन/यह समय
विश्वास/अविश्वास का नहीं
कदम फूँक--फूँक कर
रखने का है ।
-----

संजय परसाई की दो कविताएँ

यदि कोई कृपालु इस सामग्री का उपयोग करें तो कृपया इस ब्लाग का सन्दर्भ अवश्य दें । यदि कोई इसे मुद्रित स्वरूप प्रदान करें तो कृपया सम्बन्धित प्रकाशन की एक प्रति मुझे अवश्य भेजें । मेरा पता है विष्णु, बैरागी पोस्ट बाक्स नम्बर-19, रतलाम (मध्य प्रदेश) 457001

कृपया मेरे ब्लाग एकोऽहम् http://akoham.blogspot.com पर भी नजर डाले।

4 comments:

  1. बहुत ही बेहतरीन कविताएं हैं।बधाई स्वीकारें।

    ReplyDelete
  2. फिर कर रहे हैं
    प़ड़ौसी पर विश्वास
    बढ़ते आतंकवाद ....
    बहुत सुंदर लिखा है.....धन्यवाद

    ReplyDelete

अपनी अमूल्य टिप्पणी से रचनाकार की पीठ थपथपाइए.