2/15/2009

बहुत याद आई तेरी जुदाई

जब भी आई इकतीस जुलाई
बहुत याद आई तेरी जुदाई

यूं तो चर्चे होते हैं रोजाना
आज भरी आँखें, बरसी जो आई

सुना बहुत ‘सरल’ सौम्य थे तुम
ऐसे थे, तो खुदा को क्या भाई

अनवर-महेन्द्र में ढूंढते हैं तुमको
खुदा की नेमत से आवाज क्या पाई

लता भी कभी खफा थी तुमसे
गिले हुए दूर कहाँ रफी भाई

हुई होगी मुलाकात खुदा से जब
कहा होगा 'तूने गजब किया भाई'

तुम मुझे यूँ भूला न पाओगे
कहा व चल दिए, गलत है भाई

यूँ तो हर एक दिवाना है तुम्हारा
हम सबसे अलग ये मानो रफी भाई ।
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संजय परसाई की एक कविता
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1 comment:

  1. सुना बहुत ‘सरल’ सौम्य थे तुम
    ऐसे थे,तो खुदा को क्या भाई
    bhaibahut sundar man ko choo gai . dhanyawad.

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