2/19/2009

वायदों के पुल

एक कुर्सी के लिए कितने नज़ारे देखिए,
जो खुद ही लाचार हैं उनके सहारे देखिए।

सिर्फ है उजड़ा चमन और फैलता पतझड़ यहाँ,
और उनके हर तरफ बिखरी बहारें देखिए।

झूठ का है हर गली और हर सड़क पर आशियाँ,
सत्य की है हर कदम पर बस मज़ारें देखिए।

घोषणाओं-वायदों के पुल बने कितने यहाँ,
काम से ना वासता केवल हैं नारे देखिए।

सूचियों में मूल्य कितनी तीव्रता से बढ रहे,
है सुलभ चारों तरफ, दिन में भी तारे देखिए।

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आशीष दशोत्तर ‘अंकुर’ की एक गजल

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