2/14/2009

दीदी तुम्हारा ब्याह कब होगा ?

दीदी !
तुम्हारा ब्याह
कब होगा ?

तुम्हारे सपनों के
हरे बाँसों का जंगल
आ पहुँचा है
थर की भूरी-काली
बालू तक

दीदी !
तुम्हारा ब्याह
कब होगा ?

माँ का सिन्दूर
हर दिन
बापू के बलगम
के साथ
बह रहा है
लगातार

दीदी !
तुम्हारा ब्याह
कब होगा ?

ठीक तुम्हारी
गुड़िया की तरह

जिसके दूल्हे के लिए
बापू घुटनों के बल
घोड़ा बनते रहे
और माँ
‘छह मन चोखा त्यार कर‘1
जिसकी प्रतीक्षा में
वर्षों खड़ी होती रही
दरवाजे पर

दीदी !
माँ प्रतीक्षाहत् है
अपनी उम्र में
सुलगती हुई
और बापू
बिंधे हुए अश्व हैं
अपनी जिन्दगी के
आखिरी
छोर पर

और तुम
दीदी !
टिटहरी का
अण्डा हो

थर में
जिसकी
आँखों में
सपने हैं
हरे बाँस वन के.

दीदी !
तुम्हारा ब्याह
कब होगा ?
-----

1. भीली लोकगीत की पंक्ति2. कंक-59 में प्रकाशित.



प्रगतिशील कवि जनेश्वर के ‘सतत् आदान के बिना शाश्वत प्रदाता के शिल्प में’ शीर्षक से शीघ्र प्रकाश्य काव्य संग्रह की एक कविता।



यदि कोई सज्जन इस सामग्री का उपयोग करें तो कृपया इस ब्लाग का उल्लेख अवश्य करें। यदि कोई इसे मुद्रित स्वरुप प्रदान करें तो सम्बन्धित प्रकाशन की एक प्रति मुझे अवश्य भेजें। मेरा पता है - विष्णु बैरागी, पोस्ट बाक्स नम्बर-19, रतलाम (मध्य प्रदेश) 457001.

कृपया मेरे ब्लाग ‘एकोऽहम्’ http://akoham.blogspot.com पर भी एक नजर अवश्य डालें।

4 comments:

अपनी अमूल्य टिप्पणी से रचनाकार की पीठ थपथपाइए.