तुम्हारा ब्याह
कब होगा ?
तुम्हारे सपनों के
हरे बाँसों का जंगल
आ पहुँचा है
थर की भूरी-काली
बालू तक
दीदी !
तुम्हारा ब्याह
कब होगा ?
माँ का सिन्दूर
हर दिन
बापू के बलगम
के साथ
बह रहा है
लगातार
दीदी !
तुम्हारा ब्याह
कब होगा ?
ठीक तुम्हारी
गुड़िया की तरह
जिसके दूल्हे के लिए
बापू घुटनों के बल
घोड़ा बनते रहे
और माँ
‘छह मन चोखा त्यार कर‘1
जिसकी प्रतीक्षा में
वर्षों खड़ी होती रही
दरवाजे पर
दीदी !
माँ प्रतीक्षाहत् है
अपनी उम्र में
सुलगती हुई
और बापू
बिंधे हुए अश्व हैं
अपनी जिन्दगी के
आखिरी
छोर पर
और तुम
दीदी !
टिटहरी का
अण्डा हो
थर में
जिसकी
आँखों में
सपने हैं
हरे बाँस वन के.
दीदी !
तुम्हारा ब्याह
कब होगा ?
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1. भीली लोकगीत की पंक्ति2. कंक-59 में प्रकाशित.
प्रगतिशील कवि जनेश्वर के ‘सतत् आदान के बिना शाश्वत प्रदाता के शिल्प में’ शीर्षक से शीघ्र प्रकाश्य काव्य संग्रह की एक कविता।
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बहुत मार्मिक कविता!
ReplyDeleteमार्मिक कविता...
ReplyDeleteसमयचक्र: चिठ्ठी चर्चा : वेलेंटाइन, पिंक चडडी, खतरनाक एनीमिया, गीत, गजल, व्यंग्य ,लंगोटान्दोलन आदि का भरपूर समावेश
बहुत ही मार्मिक ओर एक गरीब ओर मजबुर मां बाप की ओयथा जाहिर करती कविता.
ReplyDeleteधन्यवाद
भुल सुधार ऒयथा की जगह **व्यथा पढे
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