2/22/2009

जीएगा पंछी

बात इन्सान की हर बार करेगा पंछी,
दर्द हर दौर में जिस्मों से हरेगा पंछी ।

उनके महलों से उसे कोई मोहब्बत नहीं,
अपने आकाश में बेखौफ़ उड़ेगा पंछी।

अपनी आँखों को जमाए रखेगा धरती पर,
आसमानी बुलन्दियों को छुएगा पंछी।

छोड़कर दुनिया के हसीन ताजमहल,
अपनी ज़मीं और जन के बीच रहेगा पंछी ।

तीर कितने ही चलाए जालिम ज़माना
मौत के बाद भी हर बार जीएगा पंछी ।

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आशीष दशोत्तर ‘अंकुर’ की एक गजल

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5 comments:

  1. आशीष दशोत्तर ‘अंकुर’ की रचना पसंद आई, आभार.

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  2. बढिया आशिष जी,आभार विष्णु भैया आपका।

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  3. बहुत सी सुंदर लगी यह रचना.
    धन्यवाद

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  4. बहुत सुन्दर रचना प्रेषित की है।आभार।

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  5. 'तीर कितने ही चलाए जालिम ज़माना
    मौत के बाद भी हर बार जीएगा पंछी ।'
    -यह सकारात्मक सोच काबिले तारीफ़ है.

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