दर्द हर दौर में जिस्मों से हरेगा पंछी ।
उनके महलों से उसे कोई मोहब्बत नहीं,
अपने आकाश में बेखौफ़ उड़ेगा पंछी।
अपनी आँखों को जमाए रखेगा धरती पर,
आसमानी बुलन्दियों को छुएगा पंछी।
छोड़कर दुनिया के हसीन ताजमहल,
अपनी ज़मीं और जन के बीच रहेगा पंछी ।
तीर कितने ही चलाए जालिम ज़माना
मौत के बाद भी हर बार जीएगा पंछी ।
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आशीष दशोत्तर ‘अंकुर’ की एक गजल
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आशीष दशोत्तर ‘अंकुर’ की रचना पसंद आई, आभार.
ReplyDeleteबढिया आशिष जी,आभार विष्णु भैया आपका।
ReplyDeleteबहुत सी सुंदर लगी यह रचना.
ReplyDeleteधन्यवाद
बहुत सुन्दर रचना प्रेषित की है।आभार।
ReplyDelete'तीर कितने ही चलाए जालिम ज़माना
ReplyDeleteमौत के बाद भी हर बार जीएगा पंछी ।'
-यह सकारात्मक सोच काबिले तारीफ़ है.