पहले जैसी प्रीत नहीं है ।
रिमझिम-रिमझिम बरसे पानी,
बन्धु ! ऐसी रीत नहीं है ।
हम जीते हैं और वे हारे,
फिर भी अपनी जीत नहीं है ।
साज़ वही आवाज़ वही है,
लेकिन वो संगीत नहीं है ।
तरह - तरह से हमें डराया,
दिल अपना भयभीत नहीं है ।
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आशीष दशोत्तर ‘अंकुर’ की एक गजल
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सुन्दर गज़ल प्रेषित की है।
ReplyDeleteबेहतरीन अभिव्यक्ति। आनंद आया।
ReplyDeleteWaah ! sundar!
ReplyDeleteरिमझिम-रिमझिम बरसे पानी,
ReplyDeleteबन्धु ! ऐसी रीत नहीं है ।
hogi kaise ?
sumadhur parn sangeet jo nahi hai
सावन के वो गीत नहीं हैं,
ReplyDeleteपहले जैसी प्रीत नहीं है ।
बिलकुल सही कहा, अब तो पहले जेसा कुछ भी नही....
धन्यवाद