2/02/2009

ऐसी रीत नहीं है

सावन के वो गीत नहीं हैं,
पहले जैसी प्रीत नहीं है ।

रिमझिम-रिमझिम बरसे पानी,
बन्धु ! ऐसी रीत नहीं है ।

हम जीते हैं और वे हारे,
फिर भी अपनी जीत नहीं है ।

साज़ वही आवाज़ वही है,
लेकिन वो संगीत नहीं है ।

तरह - तरह से हमें डराया,
दिल अपना भयभीत नहीं है ।

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आशीष दशोत्तर ‘अंकुर’ की एक गजल



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5 comments:

  1. सुन्दर गज़ल प्रेषित की है।

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  2. बेहतरीन अभिव्‍यक्ति। आनंद आया।

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  3. रिमझिम-रिमझिम बरसे पानी,
    बन्धु ! ऐसी रीत नहीं है ।


    hogi kaise ?
    sumadhur parn sangeet jo nahi hai

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  4. सावन के वो गीत नहीं हैं,
    पहले जैसी प्रीत नहीं है ।
    बिलकुल सही कहा, अब तो पहले जेसा कुछ भी नही....
    धन्यवाद

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