2/26/2009

फिलहाल चैराहे पर है

पेट की जरूरत की घण्टी

दिमाग में बजी

और इस तरह जन्म हुआ

भूख के पहले अनुभव का


फिर सक्रिय हुए हाथ

अलबत्ता रोटी तक पहुँचने में

एक लम्‍‍बा वक्त गुजरा


रोटी से ही शान्‍‍त होती है

पेट की आग

यह अनुभव दूसरा था

भूख से रोटी तक की

यात्रा कर चुके अनुभव

फिलहाल चैराहे पर हैं।


-----


प्रगतिशील कवि जनेश्वर के ‘सतत् आदान के बिना शाश्वत प्रदाता के शिल्प में’ शीर्षक से शीघ्र प्रकाश्य काव्य संग्रह की एक कविता


यदि कोई सज्जन इस सामग्री का उपयोग करें तो कृपया इस ब्लाग का उल्लेख अवश्य करें। यदि कोई इसे मुद्रित स्वरुप प्रदान करें तो सम्बन्धित प्रकाशन की एक प्रति मुझे अवश्य भेजें। मेरा पता है - विष्णु बैरागी, पोस्ट बाक्स नम्बर-19, रतलाम (मध्य प्रदेश) 457001.


कृपया मेरे ब्लाग ‘एकोऽहम्’ http://akoham.blogspot.com पर भी एक नजर अवश्य डालें।


4 comments:

  1. सुन्दर रोचक सार्थक Please visit at manoria.blogspot.com

    ReplyDelete
  2. भूख की वास्तविक अभिव्यक्ति

    ReplyDelete
  3. यह अनुभव दूसरा था



    भूख से रोटी तक की

    यात्रा कर चुके अनुभव

    फिलहाल चैराहे पर हैं।

    बहुत ही सुंदर भाव.
    धन्यवाद

    ReplyDelete

अपनी अमूल्य टिप्पणी से रचनाकार की पीठ थपथपाइए.