
वे तो सोते हैं सिर्फ ख़्वाब में जाने के लिए,
मैं तो जगता रहा हूँ ख़्वाब सजाने के लिए ।
जो लग चुके हैं तुमपे किस तरह छुपाओगे,
आईना रखता हूँ मैं दाग़ दिखाने के लिए।
जिसमें हो जाए भस्म पाप और अनैतिकता,
ऐसी चिंगारी लाओ आग लगाने के लिए ।
खून की होलियों से खूब ही नहलाया है,
रंगे-उल्फत उड़ाओ फाग बचाने के लिए ।
दूरियॉं दूर-दूर रहने से बढ़ीं कितनी,
पास तो आओ ज़रा, पास बुलाने के लिए ।
-----
आशीष दशोत्तर ‘अंकुर’ की एक गजल
यदि कोई कृपालु इस सामग्री का उपयोग करें तो कृपया इस ब्लाग का सन्दर्भ अवश्य दें । यदि कोई इसे मुद्रित स्वरूप प्रदान करें तो कृपया सम्बन्धित प्रकाशन की एक प्रति मुझे अवश्य भेजें । मेरा पता है - विष्णु बैरागी, पोस्ट बाक्स नम्बर-19, रतलाम (मध्य प्रदेश) 457001
कृपया मेरे ब्लाग ‘एकोऽहम्’ http://akoham.blogspot.com भी नजर डाले।
आभार इस गज़ल को प्रस्तुत करने का. बढ़िया है.
ReplyDeleteबहुत सुंदर....
ReplyDelete्पास तो आओ ज़रा,पास बुलाने के लिए,आभार अच्छी रचना पढवाने के लिए।
ReplyDeleteवे तो सोते हैं सिर्फ ख़्वाब में जाने के लिए,
ReplyDeleteमैं तो जगता रहा हूँ ख़्वाब सजाने के लिए ।
बहुत सुंदर जनाव जबाब नही.
धन्यवाद