12/31/2008

झरोखा



।। झरोखा ।।



बन्द दरवाजे के भीतर


होती है एक छोटी दुनिया


आराम के लिए खास जगह


रखा जाता सोफा,


पहली नजर में पसन्द


आती है टीवी रखने की जगह,


वास्तु से तय करते हैं


हर चीज का मुकाम ।


करीने से सजी इस


दुनिया में बहुत जरूरी है


पढ़ने को किताबें


लिखने को मेज


आराम को नाजुक सेज


एक कोना


जहाँ हो प्यार की बातें


जहाँ पूछ सकें


एक दूसरे की तकलीफें


खाने की मेज पर साथ होने


और सुबह सैर पर जाने का


नियम जितना जरूरी है


उससे कहीं ज्यादा जरूरी है


एक झरोखे का होना ।


इसी से होकर आएँगी


नन्हीं किरणें सूरज की


पुरवाई की राह होगी यह खिड़की


छोटी दुनिया को बड़ी दुनिया


से जोड़ने के लिए


शहर के फ्लेट में


चाहिए एक खिड़की


इसी झरोखे से


फुदकती आई चिड़िया


बसाएगी अपनी


छोटी दुनिया ।


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‘सपनों के आसपास’ शीर्षक काव्य संग्रह से पंकज शुक्ला ‘परिमल’ की एक कविता


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1 comment:

  1. नव वर्ष की आप और आपके परिवार को हार्दिक शुभकामनाएं !!!नया साल आप सब के जीवन मै खुब खुशियां ले कर आये,ओर पुरे विश्चव मै शातिं ले कर आये.
    धन्यवाद

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