।। झरोखा ।।
बन्द दरवाजे के भीतर
होती है एक छोटी दुनिया
आराम के लिए खास जगह
रखा जाता सोफा,
पहली नजर में पसन्द
आती है टीवी रखने की जगह,
वास्तु से तय करते हैं
हर चीज का मुकाम ।
करीने से सजी इस
दुनिया में बहुत जरूरी है
पढ़ने को किताबें
लिखने को मेज
आराम को नाजुक सेज
एक कोना
जहाँ हो प्यार की बातें
जहाँ पूछ सकें
एक दूसरे की तकलीफें
खाने की मेज पर साथ होने
और सुबह सैर पर जाने का
नियम जितना जरूरी है
उससे कहीं ज्यादा जरूरी है
एक झरोखे का होना ।
इसी से होकर आएँगी
नन्हीं किरणें सूरज की
पुरवाई की राह होगी यह खिड़की
छोटी दुनिया को बड़ी दुनिया
से जोड़ने के लिए
शहर के फ्लेट में
चाहिए एक खिड़की
इसी झरोखे से
फुदकती आई चिड़िया
बसाएगी अपनी
छोटी दुनिया ।
-----
‘सपनों के आसपास’ शीर्षक काव्य संग्रह से पंकज शुक्ला ‘परिमल’ की एक कविता
यदि कोई कृपालु इस सामग्री का उपयोग करें तो कृपया इस ब्लाग का सन्दर्भ अवश्य दें । यदि कोई इसे मुद्रित स्वरूप प्रदान करें तो कृपया सम्बन्धित प्रकाशन की एक प्रति मुझे अवश्य भेजें । मेरा पता है - विष्णु बैरागी, पोस्ट बाक्स नम्बर-19, रतलाम (मध्य प्रदेश) 457001
कृपया मेरा ब्लाग ‘एकोऽहम्’ http://akoham.blogspot.com भी पढें ।
नव वर्ष की आप और आपके परिवार को हार्दिक शुभकामनाएं !!!नया साल आप सब के जीवन मै खुब खुशियां ले कर आये,ओर पुरे विश्चव मै शातिं ले कर आये.
ReplyDeleteधन्यवाद