।। हकीकत ।।
वे सख्त होते हैं
थोड़े बदमिजाज भी
छोटे-छोटे प्यारे बच्चों
से बेरहमी से पेश आते हैं ।
स्कूल बस या आटो रिक्शा
चालकों के बारे में
यही धारणा थी मेरी ।
पर, उस दिन
जावरा फाटक की बन्द
रेल्वे क्रासिंग पर क्या देखता हूँ-
एक स्कूली रिक्शा का चालक
बच्चों की फरमाइश पूरी कर रहा है ।
पास बैठी महिला से
जाम या बेर खरीद कर
बच्चों को खिला रहा है ।
कई बार अपनी मान्यताओं
और सुनी गई बातों के विपरीत
हकीकत यूँ आ धमकती है
और हमें करना ही
होता है यकीन ।
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‘सपनों के आसपास’ शीर्षक काव्य संग्रह से पंकज शुक्ला ‘परिमल’ की एक कविता
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हकीकत तो हकीकत होती है जिसे आँखों से देखकर विश्वास किया जा सकता है बातो से नही . बहुत बढ़िया अच्छे भाव लिए अभिव्यक्ति .धन्यवाद्.
ReplyDeleteबहुत सुंदर,होता है ऎसा भी!! धन्यवाद.
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