।। तरक्की ।।
वहाँ ज्यादा कुछ नहीं था
एक चाय की दुकान
बस का इन्तजार करते
लोगों के बैठने की जगह
और एक दुकान साइकिल की ।
गाँव के बाहर बस स्टैण्ड कही जाने वाली
जगह पर इतना ही हुआ करता था ।
कच्ची सड़क के एक ओर थी
गंगाराम चाय की दुकान
और इसके ठीक सामने
गरीब नवाज साइकिल सर्विस ।
रफीक उस्ताद की दुकान से ही
किराए पर लेकर लोगों ने
साइकिल की सवारी सीखी थी ।
शायद इसीलिए ठीक-ठाक
चल रही थी उनके जीवन की गाड़ी ।
रफीक उस्ताद इसे खुदा का फजल कहा करते थे ।
ग्राहक के मामले में गंगाराम
रफीक उस्ताद से गरीब ही था ।
अक्सर रफीक उस्ताद,
यूँ ही अपनी ओर से
लोगों को चाय पिलाया करते थे ।
गंगाराम भी खूब समझता था
तभी तो खैरियत पूछने पर
वह कहा करता था
‘‘उस्ताद का फजल है’’
धीरे-धीरे तरक्की हुई ।
गाँव आबाद हुआ
बसों की आवाजाही बढ़ी
अखबार आने लगा
रेडियो और टी. वी. आया
पर बस स्टैण्ड आज भी वहीं है ।
वहीं है गंगाराम चायवाला
और रफीक उस्ताद साइकिल वाले ।
गंगाराम की दुकान पर मिठाई भी मिलती है,
लेकिन रफीक मियाँ यहाँ नहीं आते
न गंगाराम कहता है
‘‘उस्तद का फजल है’’
दोनों दुकानों के बीच
अब पक्की सड़क बन गई है ।
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‘सपनों के आसपास’ शीर्षक काव्य संग्रह से पंकज शुक्ला ‘परिमल’ की एक कविता
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बैरागी जी
ReplyDeleteवाकई दिल को छूने वाली कविता ...............
प्रभावशाली चित्रण किया है क़स्बा का ! मैं तो भूल ही गया था किराये की साइकिल लेकर सवारी करना ! बैरागी जी को शुक्रिया, आपके परिचय का !
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