।। वारदातें ।।
शहर जल रहा है
ठीक उस सिगरेट की तरह
जो फँसी दो उँगलियों के बीच
लाशें गिर रही हैं,
जैसे गुल खिर रहा है ।
धुएँ की तरह फैल रही हैं वारदातें ।
शहर जल रहा है
दो उँगलियों में फँसी
सिगरेट की तरह ।
क्या यह आग जलाएगी कभी
उँगलियों को
या समय के होंठ पर
छोड़ जाएगी
एक स्याह निशान
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‘सपनों के आसपास’ शीर्षक काव्य संग्रह से पंकज शुक्ला ‘परिमल’ की एक कविता
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बहुत अच्छे !
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