12/28/2008

यादों का सन्‍दर्भ


।। यादों का सन्दर्भ ।।

घर बदलने से पहले
बच्चों को हिदायत देते हुए
खुद को भी बाँधना चाहा था ।
शहर में अपनी हैसियत का
घर जुटा भी लें तो
वहाँ इतनी जगह नहीं होती कि
बीवी-बच्चों के साथ
समा सके पुराने घर का सारा सामान
न चाहते हुए भी अलग करना होता है
काम आने की उम्मीद से
बचा कर रखा गया
कोई स्क्रू, कम पंक्चर हुआ ट्यूब
खाली डब्बा और अखबार ।
नए घर को खोजने से
ज्यादा तकलीफदेह है
यादों का सन्दर्भ बन गए
सामान को छोड़ना ।
घण्टों सोच के बाद भी
छोड़ना ही पड़ता है
छोटू का खिलौना,
पुरानी सन्दूक,
उसमें तह कर रखा गया कोट ।
छोड़ दिए गए सामानों में
चिट्ठियों का बण्डल भी होता है,
जिसमें से झाँकते हैं
पुराने दिन ।
नए घर में आई पहली चिट्ठी
एक दिन ऐसे ही पुरानी होगी ।
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‘सपनों के आसपास’ शीर्षक काव्य संग्रह से पंकज शुक्ला ‘परिमल’ की एक कविता

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1 comment:

  1. वाह क्या बात है, यह हम सब की एक ही कहानी है, जिसे आप ने कविता के रुप मै लिख दिया.
    धन्यवाद

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