12/05/2008

सवाल-1



।। सवाल-1 ।।



तुम चलना चाहते हो समय के साथ ?


तोड़ना होगा ईमान का घेरा


मारना होगा जमीर


करना होगा कत्ल विश्‍वास


धर कर रूप नया, बदल कर चेहरा


सारे सिद्धान्त भूल कर ही


तुम चल सकते हो समय के साथ


क्या तुम कर पाओगे ऐसा ?


जरूरी हो गया है


अब बेलिहाज होना


वरना लोगों के साथ होकर भी


अकेले रह जाओगे


तरक्की की अन्धी दौड़ में


पीछे छूट जाओगे ।
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‘सपनों के आसपास’ शीर्षक काव्य संग्रह से पंकज शुक्ला ‘परिमल’ की एक कविता
मैं पंकज के प्रति मोहग्रस्त हूँ, निरपेक्ष बिलकुल नहीं । आपसे करबध्द निवेदन है कि कृपया पंकज की कविताओं पर अपनी टिप्पणी अवश्‍‍य दें ।


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