12/30/2008

खबर



।। खबर ।।



जब तक खबर लिखता हूँ


जल जाती है बेस्ट बेकरी


उजड़ जाता है सिंगूर,


नन्दीग्राम में खाली हो जाते हैं कारतूस ।


दुर्घटनाओं में उजड़ जाते हैं घर


आतंकी छीन लेते हैं जीवन का रंग ।


आप तक पहुँचता है अखबार


तब तक घण्टों पुरानी हो जाती है पीड़ा,


जब तक जुड़ते हैं सम्वेदनाओं के तार


बिना मरहम सूख जाते हैं घाव ।
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‘सपनों के आसपास’ शीर्षक काव्य संग्रह से पंकज शुक्ला ‘परिमल’ की एक कविता


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1 comment:

  1. हां जी इसे ही तो खबर कहते है, जो खुन से,छल से लिखी हो, ओर वो लिखने वाला एक आतंकी हॊ या हमारी सरकार.... दोनो मै क्या फ़र है??
    खबर तो खबर ही है ना.

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