।। भरोसा ।।
जब से यह दुनिया बनी है
तब से ही
दो कौमों में बँट गई है ।
एक, जो यकीन करते हैं,
जिन्हें नहीं सुहाता
सपनों का बिखरना
और इन्सान का बदलना ।
विश्वास टूटते हैं तो वे खुद टूट जाते हैं
फिर नहीं कर पाते भरोसा
न खुद पर न खुदा पर ।
दूसरे, जो बिखरे सपनों
को जोड़ते हैं बार-बार ।
विश्वास टूट रहे हैं,
इसलिए नहीं हारते वे ।
वे बुनते हैं नई राह
यह मानते हुए कि
एक उम्मीद का बुझना
दूसरे सपने का जागना है ।
जब से यह दुनिया बनी है
शायद तब ही से
दो कौमों में बँट गई है ।
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‘सपनों के आसपास’ शीर्षक काव्य संग्रह से पंकज शुक्ला ‘परिमल’ की एक कविता
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बहुत ही सुंदर. आभार.
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर, भरोसा तोडने वाले बहुत होते है, लेकिन जिन्दगी तो फ़िर भी चलती है...
ReplyDeleteधन्यवाद