।। खूबसूरती ।।
लकदक रोशनी और
कैमरों के फ्लेश के
बीच ही नहीं होता सौन्दर्य ।
इंच में बँधी देह,
तयशुदा मुस्कुराहट
और रटे-रटाए जवाबों में
खूबसूरती कम
पैकेजिंग ज्यादा होती है ।
पत्थर तोड़ते इरादों
और रोटी बेलते हाथों
में भी होता है सौन्दर्य ।
विजय पर इठलाती रूपसी
से ज्यादा खूबसूरत है
आँगन बुहारती स्त्री,
जिसके रहते मैला
नहीं होता घर और परिवार ।
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‘सपनों के आसपास’ शीर्षक काव्य संग्रह से पंकज शुक्ला ‘परिमल’ की एक कविता
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वाह वाह क्या बात है, मेरे मन की बात आप ने लिख दी.
ReplyDeleteधन्यवाद