12/15/2008

खूबसूरती



।। खूबसूरती ।।



लकदक रोशनी और


कैमरों के फ्लेश के


बीच ही नहीं होता सौन्दर्य ।


इंच में बँधी देह,


तयशुदा मुस्कुराहट


और रटे-रटाए जवाबों में


खूबसूरती कम


पैकेजिंग ज्यादा होती है ।


पत्थर तोड़ते इरादों


और रोटी बेलते हाथों


में भी होता है सौन्दर्य ।


विजय पर इठलाती रूपसी


से ज्यादा खूबसूरत है


आँगन बुहारती स्त्री,


जिसके रहते मैला


नहीं होता घर और परिवार ।


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‘सपनों के आसपास’ शीर्षक काव्य संग्रह से पंकज शुक्ला ‘परिमल’ की एक कविता


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1 comment:

  1. वाह वाह क्या बात है, मेरे मन की बात आप ने लिख दी.
    धन्यवाद

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