।। जीवन ।।
शहर जब बन्द होता है
कई चीजें होती हैं बन्द ।
दुकानों पर लटके होते हैं
तालेगाड़ियाँ बन्द होती हैं,
नहीं भागते ताँगे,
उस दिन इत्मीनान से चने
खाते हैं घोड़े
और टाँगें फैलाए सोता है रामदीन ।
ठीक इसी वक्त
जब शहर में बन्द होता है
सड़क पर खेला जाता है क्रिकेट
दुकानों के बाहर
जमती हैं शतरंज की बाजियाँ
खूब फेंटे जाते हैं ताश ।
इसी वक्त सुने जाते हैं
पुराने गाने
होती है फरमाइश पसन्ददीदा खाने की ।
दिन में पापा को घर देख
कुलाँचे भरते हैं बच्चे ।
इस तरह पूरी होती है
दिल में तह कर रखी तमन्नाएँ ।
ठीक उस वक्त जब
शहर बन्द होता है
जीवन चलता है
अपने खास अन्दाज में ।
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‘सपनों के आसपास’ शीर्षक काव्य संग्रह से पंकज शुक्ला ‘परिमल’ की एक कविता
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बहुत पसंद आयी यह कविता!
ReplyDeleteबहुत सुंदर कविता लिखी आप ने .
ReplyDeleteधन्यवाद