12/19/2008

जीवन



।। जीवन ।।



शहर जब बन्द होता है


कई चीजें होती हैं बन्द ।


दुकानों पर लटके होते हैं


तालेगाड़ियाँ बन्द होती हैं,


नहीं भागते ताँगे,


उस दिन इत्मीनान से चने


खाते हैं घोड़े


और टाँगें फैलाए सोता है रामदीन ।


ठीक इसी वक्त


जब शहर में बन्द होता है


सड़क पर खेला जाता है क्रिकेट


दुकानों के बाहर


जमती हैं शतरंज की बाजियाँ


खूब फेंटे जाते हैं ताश ।


इसी वक्त सुने जाते हैं


पुराने गाने


होती है फरमाइश पसन्ददीदा खाने की ।


दिन में पापा को घर देख


कुलाँचे भरते हैं बच्चे ।


इस तरह पूरी होती है


दिल में तह कर रखी तमन्नाएँ ।


ठीक उस वक्त जब


शहर बन्द होता है


जीवन चलता है


अपने खास अन्दाज में ।


-----



‘सपनों के आसपास’ शीर्षक काव्य संग्रह से पंकज शुक्ला ‘परिमल’ की एक कविता



यदि कोई कृपालु इस सामग्री का उपयोग करें तो कृपया इस ब्लाग का सन्दर्भ अवश्‍य दें । यदि कोई इसे मुद्रित स्वरूप प्रदान करें तो कृपया सम्बन्धित प्रकाशन की एक प्रति मुझे अवश्‍य भेजें । मेरा पता है - विष्‍णु बैरागी, पोस्ट बाक्स नम्बर-19, रतलाम (मध्य प्रदेश) 457001



कृपया मेरा ब्लाग ‘एकोऽहम्’ http://akoham.blogspot.com भी पढें ।

2 comments:

  1. बहुत पसंद आयी यह कविता!

    ReplyDelete
  2. बहुत सुंदर कविता लिखी आप ने .
    धन्यवाद

    ReplyDelete

अपनी अमूल्य टिप्पणी से रचनाकार की पीठ थपथपाइए.