।। सम्बन्ध ।।
नया-नया था शहर में
दोस्तों में बैठता तो
आश्चर्य होता
उनकी टेलीफोन डायरी
पूरी भरी होती
किसी के पास तो
दो-दो डायरियाँ थीं ।
मेरा क्या था गाँव में
दो-चार दोस्त ।
अब जब शहर आ गया हूँ तो
मेरे पास भी टेलीफोन डायरी है
गाँव के दोस्त
अभी भी याद हैं
और उनके टेलीफोन नम्बर भी ।
डायरी में उनके टेलीफोन नम्बर नहीं हैं
यहाँ तो सिर्फ बाजार है
और बाजार में बिकते लोग ।
जैसी आपकी ‘पाकेट’ होगी
उसी वजन का ‘दोस्त’ तैयार ।
आज एक और दोस्त खरीदा मैंने,
अपनी डायरी में
अभी-अभी
एक टेलीफोन नम्बर लिखा है ।
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‘सपनों के आसपास’ शीर्षक काव्य संग्रह से पंकज शुक्ला ‘परिमल’ की एक कविता
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sach likha aapane.
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