12/10/2008

सम्‍बन्‍ध


।। सम्बन्ध ।।



नया-नया था शहर में


दोस्तों में बैठता तो


आश्‍‍चर्य होता


उनकी टेलीफोन डायरी


पूरी भरी होती


किसी के पास तो


दो-दो डायरियाँ थीं ।


मेरा क्या था गाँव में


दो-चार दोस्त ।


अब जब शहर आ गया हूँ तो


मेरे पास भी टेलीफोन डायरी है


गाँव के दोस्त


अभी भी याद हैं


और उनके टेलीफोन नम्बर भी ।


डायरी में उनके टेलीफोन नम्बर नहीं हैं


यहाँ तो सिर्फ बाजार है


और बाजार में बिकते लोग ।


जैसी आपकी ‘पाकेट’ होगी


उसी वजन का ‘दोस्त’ तैयार ।


आज एक और दोस्त खरीदा मैंने,


अपनी डायरी में


अभी-अभी


एक टेलीफोन नम्बर लिखा है ।

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‘सपनों के आसपास’ शीर्षक काव्य संग्रह से पंकज शुक्ला ‘परिमल’ की एक कविता


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