।। रचना ।।
हर युग में होते हैं
कुछ ऐसे लोग
जो देते हैं आवाज शब्दों को ।
वे जो डूबती नब्ज में
नई जान फूँकते शब्दों को
गढ़ते और अर्थ देते
अपने लहू से ।
उनका जीना इसलिए नहीं कि
केवल जीना है उन्हें,
वरन् वे अपने समय को
जीवन देते हैं ।
शायद, हम भी हैं उन्हीं में से एक ।
अभिमन्यु की तरह,
हमें भी करनी है कोशिश तोड़ने की
चक्रव्यूह अपना-अपना ।
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‘सपनों के आसपास’ शीर्षक काव्य संग्रह से पंकज शुक्ला ‘परिमल’ की एक कविता
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सुंदर रचना. आभार.
ReplyDeleteहमें भी करनी है कोशिश तोड़ने की
ReplyDeleteचक्रव्यूह अपना-अपना ।
आज का सच...
बहुत खुब लिखा आप ने
धन्यवाद