12/23/2008

रचना



।। रचना ।।



हर युग में होते हैं


कुछ ऐसे लोग


जो देते हैं आवाज शब्दों को ।


वे जो डूबती नब्ज में


नई जान फूँकते शब्दों को


गढ़ते और अर्थ देते


अपने लहू से ।


उनका जीना इसलिए नहीं कि


केवल जीना है उन्हें,


वरन् वे अपने समय को


जीवन देते हैं ।


शायद, हम भी हैं उन्हीं में से एक ।


अभिमन्यु की तरह,


हमें भी करनी है कोशिश तोड़ने की


चक्रव्यूह अपना-अपना ।


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‘सपनों के आसपास’ शीर्षक काव्य संग्रह से पंकज शुक्ला ‘परिमल’ की एक कविता


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कृपया मेरा ब्लाग ‘एकोऽहम्’ http://akoham.blogspot.com भी पढें ।

2 comments:

  1. सुंदर रचना. आभार.

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  2. हमें भी करनी है कोशिश तोड़ने की
    चक्रव्यूह अपना-अपना ।
    आज का सच...
    बहुत खुब लिखा आप ने
    धन्यवाद

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