12/04/2008

कौरव सभा






।। कौरव सभा ।।




स्वर सभी घुटे-घुटे



चेहरे सभी, बुझे-बुझे



मौन कुछ, स्वीकृति लिये



अज्ञात शक्ति से दबे हुए



कहीं कोई बाधा आज नहीं



विद्रोह क्यों प्रस्फुटित नहीं



सब आज फिर मौन क्यों



सब भीष्म, विदुर, द्रोण क्यों ?



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‘सपनों के आसपास’ शीर्षक काव्य संग्रह से पंकज शुक्ला ‘परिमल’ की एक कविता



मैं पंकज के प्रति मोहग्रस्त हूँ, निरपेक्ष बिलकुल नहीं । आपसे करबध्द निवेदन है कि कृपया पंकज की कविताओं पर अपनी टिप्पणी अवश्य दें ।



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