।। कौरव सभा ।।
स्वर सभी घुटे-घुटे
चेहरे सभी, बुझे-बुझे
मौन कुछ, स्वीकृति लिये
अज्ञात शक्ति से दबे हुए
कहीं कोई बाधा आज नहीं
विद्रोह क्यों प्रस्फुटित नहीं
सब आज फिर मौन क्यों
सब भीष्म, विदुर, द्रोण क्यों ?
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‘सपनों के आसपास’ शीर्षक काव्य संग्रह से पंकज शुक्ला ‘परिमल’ की एक कविता
मैं पंकज के प्रति मोहग्रस्त हूँ, निरपेक्ष बिलकुल नहीं । आपसे करबध्द निवेदन है कि कृपया पंकज की कविताओं पर अपनी टिप्पणी अवश्य दें ।
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