।। दंगाई ।।
उनके खाते में नहीं है
कोई उपलब्धि
हमेशा तालियाँ पीटने वालों
में ही शुमार रहे
कभी नहीं रहे मुखिया ।
स्कूल क्रिकेट टीम में भी
सबसे आखिरी में होता था
उनका नाम ।
पिता के लिए वे नालायक ही रहे
माँ ने कभी समझा नहीं बड़ा ।
ऐसे लोगों के पास भी
कुछ किस्से हैं, सुनाने को ।
किस्से उस रात के ।
कैसे थम गई थीं उन्हें
देख लोगों की साँसें
कैसे ऊँची दुकान का काँच
एक ही पत्थर में
भरभरा कर गिर गया था ।
वे खुद सोचते होंगे
कहाँ से आ गई थी
उनमें इतनी ताकत
कैसे कर दिया था,
एक ही बार में
धड़ सर से अलग ।
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‘सपनों के आसपास’ शीर्षक काव्य संग्रह से पंकज शुक्ला ‘परिमल’ की एक कविता
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सुंदर कविता! आज कल बहुत सी ऐसी रचनाएँ देखने को मिलती हैं जो कविता कहीं से भी नहीं होती, लेकिन कविता कही जाती हैं।
ReplyDeleteलेकिन यह कविता भी है और श्रेष्ठ भी।