।। सात दिन ।।
बाजार के जीवन
मेंटारगेट की तरह आता है एक दिन ।
ताजगी के साथ शुरु होता
नए सप्ताह का सफर ।
यह सोमवार है ।
पहली बैठक में
खुलती है फाइल
बँटते हैं काम ।
‘वेल डन’ कहते हुए बास
जोड़ता है - ‘पिछले हफ्ते ठीक
काम किया । पुरुस्कार में इस
बार तुम्हारा टारगेट दोगुना ।’
‘यस सर’ कह कर वह
मुस्कुराता है ।
दिल घबरा रहा है
लेकिन यह बाजार इजाजत नहीं देता
कि वह दिल की सुने ।
उसे तो वही करना है जो
दिमाग कहता है और दिमाग उसे
रेस का घोड़ा बना रहा है ।
आज मंगलवार है ।
सही मायने में तो यही
इम्तिहान है ।
टारगेट पाने को उसे
कैश करना है रिश्ते ।
वह पूरा ध्यान रखता है
घर की चिन्ता घर में ही रहे
बाहर उसे ‘रिजल्ट’ लाना है ।
यही बाजार का फलसफा भी है ।
आज बुधवार है ।
अब उस पर चिन्ता हावी होने लगी है ।
एक ही लक्ष्य है और एक ही तीर
वह दौड़ रहा हैसबको पीछे छोड़ने के लिए
तेज और तेज ।
आज गुरुवार है ।
एक और मीटिंग
आज बास की त्यौरियाँ चढ़ी हुई हैं ।
फिर भी आवाज नरम है,
‘‘और मेहनत, और दौड़ो ।’’
दिन और रात में कोई भेद नहीं है ।
बुरे सपनों से नहीं
टारगेट से उसकी नींद उड़ रही है ।
वह आधी मंजिल तक भी नहीं पहुँचा और
शुक्रवार आ धमका ।
अब बास भी सब्र खो चुका है
बात में अब तारीफ नहीं
हौंसला और साहस भी नहीं
केवल तनाव है ।
‘यस सर’ कह कर उसे
आज भी मुस्कुराना है ।
दिल में घबराहट है तो क्या
यह बाजार इजाजत नहीं
देता कि वह दिल की सुने ।
आज शनिवार है ।
अब उसे कुछ भी नहीं याद ।
न बेटी के स्कूल का हाफ-डे
न बाबूजी की दवाई,
केवल बास याद है और
उनकी आवाज
''मुझे रिजल्ट चाहिए ।
और.......और......''
आज इतवार है ।
सप्ताह का आखिरी दिन ।
यही आखिरी उम्मीद भी
सुबह से निकला वह
देर रात घर पहुँचा है ।
छह दिन से रेस में दौड़
रहा घोड़ा निढाल पड़ा
है अपनी बीबी के बाजू में ।
हफ्ते भर की थकान
को बिसरा कर
सोमवार आता है ।
पहली बैठक में बास
कहता है ‘वेल डन’
तारीफ के पुल बाँध वह
इस हफ्ते का टारगेट
बढ़ा देता है ।
वह मुस्कुरा कर कहता है
‘यस सर’ ।
दिल में उसके घबराहट है लेकिन
यह बाजार उसे इजाजत
नहीं देता कि वह दिल की सुने ।
बाजार डरता है कहीं
वह एक दिन रहे बीबी के साथ
सुने बेटी की किलकारियाँ
तो भुला न दे अपना टारगेट ।
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‘सपनों के आसपास’ शीर्षक काव्य संग्रह से पंकज शुक्ला ‘परिमल’ की एक कविता
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