सो, 'मित्र-धन' प्रस्तुत है ।
पंकज के काव्य संग्रह 'सपनों के आसपास' की पहली कविता मैं ने अपने ब्लाग
'एकोऽहम' पर दी थी । वह पोस्ट करते ही मुझे लगा कि अपने अन्य मित्रों की रचनाएं भी इसी प्रकार दी जा सकती हैं और दी जानी चाहिए । इस विचार के समानान्तर ही यह विचार दौडा-दौडा चला आया कि इसके लिए दूसरा ब्लाग ही उपयुक्त होगा । सो, 'मित्र-धन' प्रस्तुत है ।
यहां आप इसी प्रकार का 'मित्र-dha।। यात्रा ।।
कोलम्बस भी ऊब गया होगा
अपनी मीलों लम्बी यात्रा में ।
तेनजिंग ने भी महसूस की होगी
हारएवरेस्ट फतह के ठीक एक पल पूर्व ।
बापू को भी असम्भव लगी होगी आजादी
मुक्ति के ठीक एक क्षण पहले ।
दुनिया में हर कहीं
जीत के ठीक एक पल पूर्व
सौ टंच प्रबल होती है हार
यह जानते हुए भी कि
किनारे पर बैठ कर
पार नहीं होगी नदी
उम्मीद और नाउम्मीद के बीच
मैं क्यूँ हथियार डाल दूँ ?
लड़े बगैर क्यूँ हार मान लूँ ?
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मैं पंकज के प्रति मोहग्रस्त हूँ, निरपेक्ष बिलकुल नहीं । आपसे करबध्द निवेदन है कि कृपया पंकज की कविताओं पर अपनी टिप्पणी अवश्य दें ।
bahut sunder kavita
ReplyDeletebehtar prastuti
ReplyDeletesadhuwaad