11/16/2008

किनारे पर बैठकर पार नहीं होगी नदी

मेरे आत्‍मीय पंकज शुक्‍ला 'परि‍मल' के काव्‍‍य संग्रह 'सपनों के आसपास' की पहली कविता मैं ने अपने ब्‍लाग 'एकोऽहम' पर पोस्‍ट की थी । वह कविता पोस्‍ट करते ही मुझे विचार आया कि अन्‍य मित्रों की रचनाएं भी इसी प्रकार प्रकाशित की जानी चाहिए । किन्‍तु इस विचार के समानान्‍तर ही दूसरा विचार दौडा-दौडा आया कि इसके लिए दूसरा ब्‍लाग ही उपयुक्‍त होगा ।
सो, 'मित्र-धन' प्रस्‍तुत है ।

पंकज के काव्य संग्रह 'सपनों के आसपास' की पहली कविता मैं ने अपने ब्‍लाग
'एकोऽहम' पर दी थी । वह पोस्ट करते ही मुझे लगा कि अपने अन्य मित्रों की रचनाएं भी इसी प्रकार दी जा सकती हैं और दी जानी चाहिए । इस विचार के समानान्‍तर ही यह विचार दौडा-दौडा चला आया कि इसके लिए दूसरा ब्लाग ही उपयुक्त होगा । सो, 'मित्र-धन' प्रस्‍‍तुत है ।

यहां आप इसी प्रकार का 'मित्र-dha।। यात्रा ।।


कोलम्बस भी ऊब गया होगा


अपनी मीलों लम्बी यात्रा में ।


तेनजिंग ने भी महसूस की होगी


हारएवरेस्ट फतह के ठीक एक पल पूर्व


बापू को भी असम्भव लगी होगी आजादी


मुक्ति के ठीक एक क्षण पहले


दुनिया में हर कहीं


जीत के ठीक एक पल पूर्व


सौ टंच प्रबल होती है हार


यह जानते हुए भी कि


किनारे पर बैठ कर


पार नहीं होगी नदी


उम्मीद और नाउम्मीद के बीच


मैं क्यूँ हथियार डाल दूँ ?


लड़े बगैर क्यूँ हार मान लूँ ?


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‘सपनों के आसपास’ शीर्षक काव्य संग्रह से पंकज शुक्ला ‘परिमल’ की एक कविता



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