।। यात्रा-2 ।।
न बैठो चुप,
न सोचो हो गया सब कुछ
अभी कहाँ हुआ सृजन ?
अभी तो रचना है एक संसार
जो होगा तुम्हारा
अभी तो तुम्हारा उद्गम है
नन्हीं नदी की तरह ।
बहा दो राह के रोड़ों को
चलो तुम भी पत्थरों में
अपनी राह बुनते हुए
करो कम करने की कोशिश
समन्दर का खार,
आत्मसात कर बुरों को
बना दो अच्छा
नन्हीं नदी की तरह ।
न कहो मिल गया सब कुछ
अरे ! अभी कहाँ आराम
यहाँ तुम्हें चलना है निरन्तर
मिटाते प्यास लोगों की
नन्हीं नदी की तरह ।
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‘सपनों के आसपास’ शीर्षक काव्य संग्रह से पंकज शुक्ला ‘परिमल’ की एक कविता
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