।। बहुत दिनों बाद ।।
बहुत दिनों बाद,
आज डाकिया मेरे घर आया
और छोटी का खत लाया ।
उसने लिखा,
‘‘पापा की तबीयत ठीक है
भय्यू पढ़ाई करता है
सभी याद करते हैं ।
घर कब आओगे भइया ?’’
फोन पर कहाँ होता है यह सब
कहाँ कह पाते हैं वह
जो बह रहा है दिल-दिमाग में ।
नहीं जान पाते हम कि
बाबूजी क्यों परेशान हैं
जीजी का घुटना दर्द करता है
काम से रात गए लौटते हैं मामा
और, तल्लीन बहुत उधम करता है ।
फोन पर कहाँ मालूम होता है कि
इस बार खूब पकी है
पड़ोस वाले जीजाजी की आँवली
नानी अब सयानी हो गई है
टूट कर गिर गया है
आँगन का बरसों पुराना नीम
कि पास वाले बा’ साहब की
खाँसी बढ़ गई है ।
आज जब खत आया
जैसे पूरा घर मेरी हथेलियों पर था ।
‘‘भइया कब घर आओगे ?’’
लगा सभी बाट जोह रहे हैं ।
उसने लिखा
‘‘फूलों से लदी है चमेली’’
पूरा कमरा खुबू से भर गया जैसे ।
आज बहुत दिनों बाद
डाकिया मेरे घर आया,
और छोटी का खत लाया ।
-----
मैं पंकज के प्रति मोहग्रस्त हूँ, निरपेक्ष बिलकुल नहीं । आपसे करबध्द निवेदन है कि कृपया पंकज की कविताओं पर अपनी टिप्पणी अवश्य दें ।
यदि कोई कृपालु इस सामग्री का उपयोग करें तो कृपया इस ब्लाग का सन्दर्भ अवश्य दें । यदि कोई इसे मुद्रित स्वरूप प्रदान करें तो कृपया सम्बन्धित प्रकाशन की एक प्रति मुझे अवश्य भेजें । मेरा पता है - विष्णु बैरागी, पोस्ट बाक्स नम्बर-19, रतलाम (मध्य प्रदेश) 457001,
कृपया मेरा ब्लाग ‘एकोऽहम्’ भी पढें ।
No comments:
Post a Comment
अपनी अमूल्य टिप्पणी से रचनाकार की पीठ थपथपाइए.