11/23/2008

ब‍हुत दिनों बाद



।। बहुत दिनों बाद ।।

बहुत दिनों बाद,

आज डाकिया मेरे घर आया


और छोटी का खत लाया ।

उसने लिखा,

‘‘पापा की तबीयत ठीक है

भय्यू पढ़ाई करता है

सभी याद करते हैं ।

घर कब आओगे भइया ?’’

फोन पर कहाँ होता है यह सब

कहाँ कह पाते हैं वह
जो बह रहा है दिल-दिमाग में ।

नहीं जान पाते हम कि

बाबूजी क्यों परेशान हैं

जीजी का घुटना दर्द करता है

काम से रात गए लौटते हैं मामा

और, तल्लीन बहुत उधम करता है ।

फोन पर कहाँ मालूम होता है कि

इस बार खूब पकी है

पड़ोस वाले जीजाजी की आँवली

नानी अब सयानी हो गई है

टूट कर गिर गया है

आँगन का बरसों पुराना नीम

कि पास वाले बा’ साहब की

खाँसी बढ़ गई है ।

आज जब खत आया

जैसे पूरा घर मेरी हथेलियों पर था ।

‘‘भइया कब घर आओगे ?’’

लगा सभी बाट जोह रहे हैं ।

उसने लिखा

‘‘फूलों से लदी है चमेली’’

पूरा कमरा खुबू से भर गया जैसे ।
आज बहुत दिनों बाद

डाकिया मेरे घर आया,

और छोटी का खत लाया ।

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‘सपनों के आसपास’ शीर्षक काव्य संग्रह से पंकज शुक्ला ‘परिमल’ की एक कविता



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