12/09/2008

हकीकत






।। हकीकत ।।




वे सख्त होते हैं



थोड़े बदमिजाज भी



छोटे-छोटे प्यारे बच्चों



से बेरहमी से पेश आते हैं ।



स्कूल बस या आटो रिक्‍शा



चालकों के बारे में



यही धारणा थी मेरी ।



पर, उस दिन



जावरा फाटक की बन्द



रेल्वे क्रासिंग पर क्या देखता हूँ-



एक स्कूली रिक्‍शा का चालक



बच्चों की फरमाइश पूरी कर रहा है ।



पास बैठी महिला से



जाम या बेर खरीद कर



बच्चों को खिला रहा है ।



कई बार अपनी मान्यताओं



और सुनी गई बातों के विपरीत



हकीकत यूँ आ धमकती है



और हमें करना ही



होता है यकीन ।




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‘सपनों के आसपास’ शीर्षक काव्य संग्रह से पंकज शुक्ला ‘परिमल’ की एक कविता



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कृपया मेरा ब्लाग ‘एकोऽहम्’ भी पढें ।

2 comments:

  1. हकीकत तो हकीकत होती है जिसे आँखों से देखकर विश्वास किया जा सकता है बातो से नही . बहुत बढ़िया अच्छे भाव लिए अभिव्यक्ति .धन्यवाद्.

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  2. बहुत सुंदर,होता है ऎसा भी!! धन्यवाद.

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