12/13/2008

डाक्‍टर



।। डाक्टर ।।



हमारे पास ढेर सारे किस्से हैं,


अपनी आपबीती सुनाने को ।


बार-बार याद आ जाते हैं


वे दिन जब तुम्हारे ही एक अपने ने


हर ली थी पीड़ा ।


बताते नहीं थकते हैं,


कैसे बचाली गई थी जान,


वरना सभी उम्मीद छोड़ चुके थे ।


दुआओं और दवाओं से


ज्यादा भरोसा था तुम पर ।


मुझे शर्म आती है


तुम्हारी करतूत बताते हुए


जीवन देने के लिए छुरी उठाते


तो वरदान होता,


लेकिन तुमने हथियार की


तरह उठाई छुरी


एक नहीं सैंकड़ों लोग


पड़े थे आपरेशन टेबल पर निरीह


उनके मासूम चेहरों को देख


कर भी दया नहीं आई तुम्हें


सोच ही नहीं पाए


हरे नोटों के आगे


उजाड़ होती दुनिया के बारे में


अफसोस, हमारे पास तुम


जैसे डाक्टरों की भी हकीकत है,


ऐसी असलियत जिसे


हम किस्सों में भी नहीं चाहते ।
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‘सपनों के आसपास’ शीर्षक काव्य संग्रह से पंकज शुक्ला ‘परिमल’ की एक कविता


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1 comment:

  1. बहुत खुब सारे नही लेकिन बहुत से ९०% ड्रा आज कल ऎसे ही है.
    धन्यवाद

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