12/08/2008

।। अवसर ।।







।। अवसर ।।





कभी हम परखते उसे



अपनी कसौटी पर ।



कभी लगती मरुभूमि



और हम भटकते मुसाफिर से



कभी ठण्डे झोंके की तरह



और हम महसूसते उसका अस्तित्व



पकड़ने की चाहत में



हाथ से फिसलती जिन्दगी



और हम ठगे से तकते उसे



करीब से गुजरते हुए ।



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‘सपनों के आसपास’ शीर्षक काव्य संग्रह से पंकज शुक्ला ‘परिमल’ की एक कविता


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6 comments:

  1. aapki blog pe pahali dafa aaye bahot hi umda kavita padhane ko mila .. bahot hi khub likha hai aapne .... sath hi aapka mere blog pe bahot hi swagat hai, aapka sneh nirantar bana rahe yahi ummid karta hun ... is jahrili duniya me ..........

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  2. हिन्दी लिखाड़ियों की दुनिया में आपका हार्दिक स्वागत है, खूब लिखें नाम कमायें । हार्दिक शुभकामनायें

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  3. इसे पढाने के लिये हम सब तक पहुचने के लिये आप का धन्यवाद

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  4. कम शब्दों की सशक्त व सार्थक रचना है आपकी !
    आशा है आगे भी ऐसी ही उद्देश्यपूर्ण रचनाएं पढने को मिलेंगी !!

    मेरी शुभकामनाएं !!!

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  5. आपके इस सुंदर से चिटठे के साथ आपका ब्‍लाग जगत में स्‍वागत है.....आशा है , आप अपनी प्रतिभा से हिन्‍दी चिटठा जगत को समृद्ध करने और हिन्‍दी पाठको को ज्ञान बांटने के साथ साथ खुद भी सफलता प्राप्‍त करेंगे .....हमारी शुभकामनाएं आपके साथ हैं।

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