आदमी हैरान है,
लाचार परेशान है ।
भीड़ है चारों तरफ,
जाने कहां इंसान है ।
काशी -काबा हो आए,
देखा नहीं भगवान है ।
ज़िन्दगी के सफ़र में,
व़क्त का तूफान है ।
सब सयाने हो गए,
‘आशीष’ अभी नादान है ।
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आशीष दशोत्तर ‘अंकुर’ की एक गजल
यदि कोई कृपालु इस सामग्री का उपयोग करें तो कृपया इस ब्लाग का सन्दर्भ अवश्य दें । यदि कोई इसे मुद्रित स्वरूप प्रदान करें तो कृपया सम्बन्धित प्रकाशन की एक प्रति मुझे अवश्य भेजें । मेरा पता है - विष्णु बैरागी, पोस्ट बाक्स नम्बर-19, रतलाम (मध्य प्रदेश) 457001
कृपया मेरे ब्लाग ‘एकोऽहम्’ http://akoham.blogspot.com भी नजर डालें।
5/14/2009
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सब सयाने हो गए,
ReplyDelete‘आशीष’ अभी नादान है ।
-बहुत सही..इनका एक ब्लॉग काहे नहीं खुलवा देते..या इसी ब्लॉग का नाम इनके नाम पर कर दिजिये..तो भी चल जायेगा..कोई और आया तो गेस्ट लेखक!!
ACHHI KAHAN HAI ISME... BADHAAYEE
ReplyDeleteARSH