
कि अब मुझे गम्भीर हो जाना चाहिए
मेरी उम्र के हिसाब से
ये बच्चों सी हरकतें
शोभा नहीं देती
ये किलकारी मारकर हँसना
जोर-जोर से ताली बजाकर
किसी से हँसी-ठिठोली करना
समय भी चाहता है
कि उसके अनुसार
और उम्र के हिसाब से
व्यक्ति में परिवर्तन होना चाहिए ।
यदि उम्र पचपन की हो तो ?
तो भी
क्योंकि पचपन में
बचपन लौट आता है
और व्यक्ति/वो सारी हरकतें करता
है जो उम्र की शुरुआत
यानी बचपन में होती है ।
अब मुझे/गम्भीर होने की जरुरत नहीं है
इसलिए सभी पचपन को चाहिए
कि वो अपने बचपन के
बच्चे को जीवित रखे
उम्र के इस पड़ाव में
कम से कम
उसकी हत्या न होने दें ।
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संजय परसाई की एक कविता
यदि कोई कृपालु इस सामग्री का उपयोग करें तो कृपया इस ब्लाग का सन्दर्भ अवश्य दें । यदि कोई इसे मुद्रित स्वरूप प्रदान करें तो कृपया सम्बन्धित प्रकाशन की एक प्रति मुझे अवश्य भेजें । मेरा पता है - विष्णु बैरागी, पोस्ट बाक्स नम्बर-19, रतलाम (मध्य प्रदेश) 457001
कृपया मेरे ब्लाग ‘एकोऽहम्’ http://akoham.blogspot.com पर भी नजर डालें।
वाह!! परसाई जी..बेहतरीन!!
ReplyDeleteबहुत सुंदर.
ReplyDeleteमुझे अपनी ही एक पोस्ट की याद आ गई जो मैंने अपने ब्लॉग पर, 9 दिसम्बर 2008, को प्रकाशित की थी. लिंक नीचे दे रहा हूँ.
http://2.bp.blogspot.com/_c07MqRgkTck/ST3d7OXGxvI/AAAAAAAAAFQ/eedWlhTB-7Y/s400/May+be+the+Child+inside+is+not+alive+anymore.jpg