
चाहती है छूना
आकाश की ऊँचाइयों को
उड़ती भी है
लेकिन शिकारियों/और
जंगली भेड़ियों के डर से
पुनः लौट आती है
घोंसले में।
सोचती है चिड़िया
क्या बच पाएगी
वहशी और दरिन्दे जानवरों से?
क्या छू पाएगी कभी
आकाश की ऊँचाइयों को?
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संजय परसाई की एक कविता
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कविता का भाव अच्छा है, लेकिन कुछ बिंबों का तादात्म्य सही नहीं लग रहा है।
ReplyDeleteभाव अच्छा है ...
ReplyDeleteमेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति