
ऐसे मौसम देखे हैं ।
जख्मों को गहरा कर देते,
वो भी मरहम देखे हैं ।
बीच राह में साथ छोड़ दे,
ऐसे हमदम देखे हैं ।
सर्पों को घायल कर देते,
ऐसे चन्दन देखे हैं ।
अपने ही अपनों को काटे,
किस्से हरदम देखे हैं ।
लाचारों से दूर भागते,
जाते, राशन देखे हैं ।
पानी की इक बूँद नहीं है,
वो भी सावन देखे हैं ।
जहां पै ‘अंकुर’ एक नहीं,
ऐसे उपवन देखे हैं ।
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आशीष दशोत्तर ‘अंकुर’ की एक गजल
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वाह क्या गजल कही आपने दिल खुश हो गया
ReplyDeleteवीनस केसरी
बेहतरीन अभिव्यक्ति
ReplyDeleteशानदार रचना
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