
सुना है वे करेंगे व्यापार अपनी बस्ती में ।
आज तो अपनों के मेले, हाट हैं बाज़ार हैं,
देखना कल उनका हाहाकार अपनी बस्ती में ।
बिजली देंगे, पानी देंगे और देंगे खाद वे,
करेंगे अब राज वे मक्कार अपनी बस्ती में ।
जाग जाओ, अब संभलने का समय है आ गया,
गीत गाता फिर रहा फनकार अपनी बस्ती में ।
जाने कब हो जाए दस्तक अब यहाँ सरकार की,
है डरा-सहमा-परेशाँ, हर द्वार अपनी बस्ती में ।
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आशीष दशोत्तर ‘अंकुर’ की एक गजल
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बहुत बहुत बहुत बेहतरीन रचना! रचनाकार को बधाई!
ReplyDeleteदेखिये वे आ रहे खूँखार अपनी बस्ती में,
ReplyDeleteसुना है वे करेंगे व्यापार अपनी बस्ती में ।
वाह......!!
बिजली देंगे, पानी देंगे और देंगे खाद वे,
करेंगे अब राज वे मक्कार अपनी बस्ती में ।
लाजवाब.....!!
विष्णु जी आशीष जी की ग़ज़ल बहुत पसंद आई ....शुक्रिया ...!!