5/08/2009

आईना

अपने दिल की बात दिखलाने लगा है आईना,
सामने ज़ज्बात दिखलाने लगा है आईना ।

कितना ही सजधज कर खड़े हो जाएं सामने,
आपकी औक़ात दिखलाने लगा है आईना ।

गले मिलते राम-औ रहमाँ एक पल को रुक गए
यूँ लगा कि जात दिखलाने लगा है आईना ।

खून के दरिया ही उसमें अब दिखाई दे रहे,
लगे है, हालात दिखलाने लगा है आईना ।

सुबह देखो उसमें या कि देखो उसमें शाम को,
हर घड़ी बस रात दिखलाने लगा है आईना ।

मुस्कुराते लोग कितने सामने उसके खड़े,
अश्कों की बारात दिखलाने लगा है आईना।

सामने आए तो ‘आशीष’ टूटकर बिखर गया,
कैसे-कैसे करामात दिखलाने लगा है आईना ।
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आशीष दशोत्तर ‘अंकुर’ की एक गजल



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2 comments:

  1. वाह!! आभार इस प्रस्तुति का!

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  2. काश आईना देख कर हर कोई सीख पाता तो,
    ज़रूर खुशियां ही खुशियां दिखाता आईना॥

    बहुत बढिया आशीष जी,आभार विष्णु भैया।

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