
लीक से देखा है हटकर ।
दृश्य बतलाने लगा है,
बात अपनी ही उलटकर ।
पाप है उनके दिलों में,
बात करते जो मटककर ।
हमसफर जिसको बनाया,
चला है दामन झटककर ।
आया है दरिया भी देखो,
आँख में अपनी सिमटकर ।
आशियाँ अब तो बना लो,
खूब देखा है भटककर ।
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आशीष दशोत्तर ‘अंकुर’ की एक गजल
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आशीष भाई छाये हैं गिलो दिमाग पर.
ReplyDeleteगिलो = दिलो!! :)
ReplyDeleteबहुत ही उम्दा रचना के लिए बधाई...
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