
लाचार परेशान है ।
भीड़ है चारों तरफ,
जाने कहां इंसान है ।
काशी -काबा हो आए,
देखा नहीं भगवान है ।
ज़िन्दगी के सफ़र में,
व़क्त का तूफान है ।
सब सयाने हो गए,
‘आशीष’ अभी नादान है ।
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आशीष दशोत्तर ‘अंकुर’ की एक गजल
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सब सयाने हो गए,
ReplyDelete‘आशीष’ अभी नादान है ।
-बहुत सही..इनका एक ब्लॉग काहे नहीं खुलवा देते..या इसी ब्लॉग का नाम इनके नाम पर कर दिजिये..तो भी चल जायेगा..कोई और आया तो गेस्ट लेखक!!
ACHHI KAHAN HAI ISME... BADHAAYEE
ReplyDeleteARSH