5/05/2009

करेंगे अब राज वे

देखिये वे आ रहे खूँखार अपनी बस्ती में,
सुना है वे करेंगे व्यापार अपनी बस्ती में ।

आज तो अपनों के मेले, हाट हैं बाज़ार हैं,
देखना कल उनका हाहाकार अपनी बस्ती में ।

बिजली देंगे, पानी देंगे और देंगे खाद वे,
करेंगे अब राज वे मक्कार अपनी बस्ती में ।

जाग जाओ, अब संभलने का समय है आ गया,
गीत गाता फिर रहा फनकार अपनी बस्ती में ।

जाने कब हो जाए दस्तक अब यहाँ सरकार की,
है डरा-सहमा-परेशाँ, हर द्वार अपनी बस्ती में ।
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आशीष दशोत्तर ‘अंकुर’ की एक गजल



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2 comments:

  1. बहुत बहुत बहुत बेहतरीन रचना! रचनाकार को बधाई!

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  2. देखिये वे आ रहे खूँखार अपनी बस्ती में,
    सुना है वे करेंगे व्यापार अपनी बस्ती में ।

    वाह......!!

    बिजली देंगे, पानी देंगे और देंगे खाद वे,
    करेंगे अब राज वे मक्कार अपनी बस्ती में ।
    लाजवाब.....!!

    विष्णु जी आशीष जी की ग़ज़ल बहुत पसंद आई ....शुक्रिया ...!!

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