5/09/2009

और तूफान शान्त हो गया

तूफान आते ही
हो जाती है
अच्छे-अच्छों की हालत पस्त
लेकिन
इस तूफान के आने से
होती थी हर एक को खुशी
अस्सी दशक को याद करती
मेण्टेन बॉडी वाले तूफान का
सरपट चले आना
सबको कर देता था
आश्चर्यचकित
और
अस्सी के पड़ाव पर भी
पचास से अस्सी धेला
खीसे में रख
जब मंगल करता
अपनी खपच्चियों की गुमटी
तो ब़ड़े-बड़े व्यापारी
दबा लेते थे
दांतों तले अंगुली
क्योंकि दिनभर
बी.पी., दमे व शुगर की
पु़डियों को फाँकते
जब अपनी आलीशान
दुकानों के शटर गिराते
तो सामने रखी
खपच्चियों की गुमटी
और मेण्टेन बॉडी
उनका मुँह चिढ़ाती ।
आज जरुर तूफान
बहुत तेजी से गुजर चुका है
लेकिन अपने पीछे
तबाही का मंजर नहीं
प्रेम और सौहार्द्र का
ऐसा गुलशन छोड़ गया है
जो सबके दिलों को
महकाता रहेगा ।
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संजय परसाई की एक कविता

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