5/18/2009

समानता

घड़ी और मनुष्य में
बहुत समानता है

घ़ड़ी भी चलती है
मनुष्य भी

घड़ी की तीन सुइयों के समान
बचपन, जवानी और बुढ़ापा है

सेकण्ड की सुई
साँसों के समान
अनवरत चलती है
टिक-टिक की आवाज
दिल की धड़कन सी लगती है

संयोग है कि
घ़ड़ी को मनुष्य चलाता है
लेकिन
सत्यता इसके विपरीत है
घड़ी ही मनुष्य को चलाती है

एक समय आता है
चलते-चलते घड़ी रुक जाती है
और
मनुष्य भी... ।
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संजय परसाई की एक कविता



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