बहुत दिनों से उधेड़बुन में थाजीवन की छोटी-मोटी
समस्याओं को लेकर
कोशिश में था हल की
लेकिन
छोटी - मोटी समझ
करता रहा नजरअन्दाज
लेकिन उस दिन
खिसक गई जमीन
पैरों तले से
जब सारी समस्याओं को
अपने सामने खड़ी पाया
थोड़ा लडखडाया
नेकिन घबराया नहीं
फिर शुरु हो गई
समस्याओं को
सुलझाने
कीएक कड़ी और बड़ी कोशिश ।
जब सोचा समाधान
तो थोड़ी राहत मिली
मन कुछ हल्क हुआ
और सोचने - समझने की
थोड़ी और शक्ति मिली ।
अब लगने लगा
कि जीवन कठोर जरुर है
लेकिन कदम सही राह पर बढ़े
तो मंजिल अवश्य मिलती है ।
और सचमुच
आत्मविश्वास बढ़ने के साथ-साथ
दिखाई देने लगी थी
समस्याओं के धुंधलके में
आशा की किरण।
और अहसास होने लगा था
कि एक और नई सुबह का
सूर्य उग रहा है
पूरे आत्मविश्वास के साथ
मंजिल पाने को।
और छँटने लगे थे
समस्याओं के गहरे - काले बादल
आत्मविश्वास के सूर्य की
पहली किरण के साथ ही।
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संजय परसाई की एक कविता
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बहुत सहज अभिव्यक्ति है भाई संजय परसाई जी. अच्छा लगा पढ़कर. आभार विष्णु जी.
ReplyDeleteऔर छँटने लगे थे
ReplyDeleteसमस्याओं के गहरे - काले बादल
आत्मविश्वास के सूर्य की
पहली किरण के साथ ही।
----इन पंक्तियों मे जज्बा है आगे बड़ने का
जीवन संघर्ष के बीच विजय की कविता!
ReplyDeleteसच है...संघर्ष से घबडाना नहीं चाहिए....बहुत अच्छी रचना पढवायी।
ReplyDeleteजीने का मकसद और हौसला देती रचना
ReplyDeleteऔर छँटने लगे थे
ReplyDeleteसमस्याओं के गहरे - काले बादल
आत्मविश्वास के सूर्य की
पहली किरण के साथ ही।
बहुत ही सुंदर भाव लिये ओर जीने की कला सीखाती है आप की यह कविता, ओर आत्मविश्रास जगाती है.
धन्यवाद
बहुत ही सुंदर भाव
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